Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५११

बिदा होइ करि सदन सिधारा।
धान रिदे सतिगुर को धारा ॥४५॥
बहु प्रकार की अुसतति करि कै।
भयो निहाल सु अग़मत धरि कै।
जाइ सदन महिण संगति कीनि१।
सतिगुर नामजपावन दीनि२ ॥४६॥
जिस को बचन कहै फुर जाइ।
होवति भए सिज़ख समुदाइ।
अबि लग तिस के जाने जाइण३।
कवि संतोख सिंघ पूरन धाइ ॥४७॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे गंगो प्रसंग बरनन नाम
चतुर पंचासती अंसू ॥५४॥


१सतिसंग बणाइआ।
२भाव नाम जपाइआ।
३हुण तक गंगू दी संप्रदा दे लोकीण अुस तोण जाणे जाणदे हन। भाव गंगू शाही कहाअुणदे हन।

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