Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ६५

तिन कहु समता किस की जापू।
गान अनणद सागर के मीन।
आठहुण जाम रहति सम लीनि ॥१४॥
गुर घर की नित सेवा ठानति।
अपर मनोरथ मन नहिण आनति।
त्रिं छित की१ बहु रहि रखवारी।
हरखति गुरू हुकम अनुसारी ॥१५॥
अस भाई बुज़ढा गुरदास२।
महिमा कहि न सके कवि तास३*।
सज़त बाक बर श्राप जु दीनसि।
अंगीकार सतिगुरू कीनसि ॥१६॥
इह सभि कथा अगारी बरनोण४।
जिस प्रकार इन को आचरनो५।
सरब भांति की शकित बिसाला।
जिस चाहसि तिम करणे वाला ॥१७॥
अनिक भांति के बिघनुह पाइ।
नहिण जिन कीनस कबहुण लखाइ।
धरनी सम जिह धीरज धारी+।पौन पीर६ ते टरे न टारी ॥१८॥
तिस कअु बंस सु ताल७ मनिद८।
अुपजो रामकुइर अरबिंद९।
दसमे पातिशाहि बर बीर।
तिनहु पाद पंकज के तीर ॥१९॥


१घाह ते भोण दी।
२गुराण दा दास।
३तिसदी।
*पा:-महिमा कवन कहि सकै तास।
४वरणन कराणगा।
५करतज़ब।
+पा:-धरनीधर सम धीरज धारी।
६पीड़ा (रूपी) पौं।
७सरोवर।
८निआई।
९कवल।

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