Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ५१६

५८. ।विज़सा गोपी आद सिज़खां प्रति अुपदेश॥
५७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>५९
दोहरा: विज़सा गोपी तुलसीआ,
भारदुआजी बिज़प्र।
गोइंद घेई१ भाईअड़ा,
आए मिलि करिछिज़प्र ॥१॥
चौपई: बंदन करि बैठे सभि पास।
हाथ जोरि कीनी अरदास।
गुरू गरीब निवाज! सुनाईए।
दै शबदनि महि संसै पाईए ॥२॥
नामदेव जन२ सबदु बनाए।
दै थल रागनि बिखै टिकाए।
दोनहु मैण बिरोध दिखि पाए।
एक भगत के दुअू सुहाए३ ॥३॥
-०-
पांडे तुमरा रामचंदु सो भी आवतु देखिआ था ॥
रावन सेती सरबर होई घर की जोइ गवाई थी ॥३॥
पुना:
जसरथ राइ नदु राजा मेरा राम चंदु प्रणवै नामा ततु रसु अंम्रितु पीजै ॥४॥४॥
-०-
चौपई: प्रथम शबद महि जानी परै।
तरक ईश अवतारनि करै।
दुतीए महि महिमा अवतार।
नामदेव ने कीनि अुचारि ॥४॥
अरथ बिवसथा कैसे होइ।
हम किम समझहि? अुचरहु सोइ।
सुनि श्री अरजन वाक अुचारा।
निरगुण सरगुण दै पख धारा ॥५॥
दोनहु की अुपासना नारी।किनहु धरी निज रिदै मझारी।
जैसे सागर जाइ निहारे।

१जात है, देखो अंक १५ इहो अंसू।
२भगत ने।
३शोभनीक (शबद) हन।

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