Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ६६

मधुप मनिद१ अनद मकरंद।
तजो न पासि मुकंद बिलद।
स्री गुर ते बहादर पाछे।
दीनसि तिलक दसम गुर आछे ॥२०॥
कली जिगा जराअुन जरी२।
इन ते ले सतिगुर सिर धरी।
आयुध दए आदि शमशेर।
ले करि धारे गुर सम शेर३ ॥२१॥
दस पतिशाहिन के निति संगी।
सतिगुर क्रिति४ को चित चहि चंगी।
जग महिण बहु सिज़खी बिसतारी।
अनिक नरन कहु कीन अुधारी ॥२२॥
जथा चज़क्रवै++ अधिपति५ आगे।
मंत्री६ रहैण सुमति महिण लागे।
तिम सतिगुर घर के इह भए७।
अति शोभासिज़खी कहु दए ॥२३॥
सद गुन८ के इह कोश९ बिसाले।
भे प्रापति१० जो इन मग चाले।
श्री सतिगुर दसमे पतिशाहू।
गमन कीन जबि सचखंड मांहू ॥२४॥
पंथ खालसा अुतपति करि कै।
राज तेज को छज़त्र सु धरि कै।


१भौरे वाणू।
२जड़तां नाल जड़ी होई।
३शेर तुल (बली)।
४सेवा।
++पा:-चज़क्र है।
५चज़क्रवरती राजा
।सं: चक्रवरती। प्रा: चक्रवई, हिंदी चक्रवै, चक्रवै॥।
६वग़ीर।
७भाव वग़ीर।
८स्रेशट गुणां।
९खग़ानां।
१०प्रापत होए।

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