Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १)७०

लिखनि बिखै जिमि अवधि गजानन१।
जोगी सभिहिनि की पंचानन२।
सैनापति की अवधि खड़ानन३।
रचना४ रचनन महिण चतुरानन५ ॥५॥
तिमि बुज़ढा साहिब ब्रह गानी।
सिज़खी के अधार गुन खानी।
तिन को सुजसु कहां लौ कहीऐ।
जीवन मुकति अवसथा लहीऐ ॥६॥
तिन को पुज़त्र नाम कहिण -भांा-।
जिन जानो मीठो गुर भांा।
पिता समान गान महिण पूरा।
कामादिक रिपु हते बिसूरा६ ॥७॥
तिस को पुज़त्र नाम कहिण -स्रवं७-।
स्रवं सुणो जसु जिह८ सम श्रवं९।
सतिगुर सिज़खी कहु बड भारा।
सरब सहारो भा जग भारा ॥८॥
तिन के अुपजो पुज़त्र -जलाल-।
गुर पग प्रेम रंग चढि लाल१०।
बहु सिज़खन कहु गुरमति दीनसि।
मिले पहुणच नर मुकती कीनस* ॥९॥
तिस को पुज़त्र नाम कहिण -झंडा-।
जिस को जस जाहर जिमि झंडा११।


१गणेश।
२जोगीआण सारिआण दी (अवधी) शिवजी।
३शामकारतक (शिव जी दा पुज़त्र)।
४स्रिशटी।
५ब्रहमा।
६दुखी करके।
७'सरवं नाम सी।
८जिसदा जस कंनीण सुणिआ है।
९सरवं (भगत दे) वरगा।
१०गूड़्हा।
*पा:-लीनस।
११निशान वाणू (अुजागर)।

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