Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ६८
६. ।अकबर ळ इक सिज़ख ने गुरू जी दी सुधि दिज़ती॥
५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ७
दोहरा: बहुत बरख जब बीत गे,
अकबर शाहु बिसाल।
सोचति सोचन को अधिक,
करि बिचार तिस काल ॥१॥
चौपई: सभि सूबे अुमराअु बुलाए।
गन मंत्री सुनि करि चलि आए।
मुखी* सैन के सकल हकारे।
निज सामीप कहति सतिकारे ॥२॥
जबि सभि आए लगो दिवान।
अुमरावन दिश दिखि सुलतान।
कहति भयो सुन हो बच सारे।
करहु बिचारन पुनहुण अुचारे१ ॥३॥
जबि दिज़ली ते चढे चतौर।
तबहि मनाए सभि ही ठौर।
जिते पीर सभि को मैण माना।दीन शरीनी+ वसतू नाना ॥४॥
सभिहिनि की आगा कहु पाए।
बिच अजमेर कमान चढाए।
मै निज कारज कौ सिध जाना।
करि पीरन पर सिदक महाना ॥५॥
चढि चतौर पर आयहु तबै।
अपनो दल संग लै करि सबै।
इहां जंग जेता कछु भयो।
सकल बीच तुम जानि सु लयो ॥६॥
अनिक जतन करि कीनि++ लराई।
जोधा मरे ब्रिंद दुह घाई२।
*पा:-मुज़ख।
१ते फेर कहो।
+पा:-सीरनी।
++पा:-अनिक।
२दोहां पासिआण दे।