Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८)६८

९. ।पैणदे खान ते अुस दा जवाई। बाग़॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>१०
दोहरा: असमां खां चित चटपटी, वसतु सुसर की१ देखि।
-लैहौण कहि निज सास को, कै ग्रिह तजौण अशेख ॥१॥
सैया छंद: बनौण फकीर निकसि करि बाहर
मिलौण न तिन की तनुजा संग।
मोहि अुचित है सुंदर पोशिश
चीरा छोरदार सजि संग।
खान महान आरबल होए
तअू बाणकपन* रिदे अुमंग२।
मुझ सम सुत को देति न हित करि
अनलाइक नहि सहौण प्रसंग३- ॥२॥
एव बिचारति गमनो ग्रिह को
बैठि सास ढिग द्रिग चल नीर।
मुरझानो मुख, पिखि करि बोली
किम तूं दुख ते दिखति अधीर?
सुनि करि कहो कीनि अपमाना
मैण जाचे दे खान न चीर।
गुरू निकटि ते लायो हय कोमुहि अरूढिबे दियो न बीर ॥३॥
तैण दिवाइ तौ कुशल अहै मम
नांहि त मरि हौण देरि न लाइ।
हम पठान के पूत सहैण नहि
जे प्रतिकूली बात बनाइ४।
सुत सम मो कहु पार करहु नित
यां ते छल को जानो जाइ।
पोशिश तुरंग देहु तबि जीवन
इहु साची मैण देहु सुनाइ ॥४॥


१सहुरे दी।
*पा:-बालपन।
२खान वडी आयू दा होइआ है तां बी रिदे विच बाणकेपन दी अुमंग है।
३अयोग गज़ल मैण नहीण सहार सकदा।
४जे (कोई साडी मनशा दे) अुलट गज़ल करे।

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