Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७)७०

६. ।स्री सूरज मज़ल जी दा विवाह॥
५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>७
दोहरा: बसहि बास१ करतारपुरि, सूरजमल ससुरार२।
गुरदिज़ते ढिग गयो तबि, बाहु बोणत सु बिचारि ॥१॥
चौपई: मो चित महि अबि देवहु बाहू।
आयो बूझनि तुमरे पाहू।
सुनि श्री गुरदिज़ते पुन कहो।
भले मनोरथ तोण अुर लहो ॥२॥
साहे को निकसाइ पठावहु++।
गुर हरखहि, अबि नहि बिलमावहु।
सुनि सलाह निज मंदर आयो।
बैठि बिज़प्र के निकटि बुलायो ॥३॥
मम पुज़त्री को सोधहु साहा++।
लिखि भेजहि पुन सतिगुर पाहा।
सुनि दिज पज़त्री देखि बिचारो।
मास विसाख बिखै निरधारो ॥४॥
सताईसवी लिखि दी पाती।
दिजबर करो तार भलि भांती।
श्री गुरदिज़ते तबि कहि भेजा।
हम हैण तार संग दिज ले जा३ ॥५॥
इक दिन पुरि बिताइ करि चाले।
दिज साहा लेकरि निज नाले।
आनि सुधासर पुरी प्रवेशे।
मिले तबहि परिवार अशेशे ॥६॥
करि डेरा कर चरन पखारे।
बसत्र शसत्र सुंदर तन धारे।
श्री गुरदिज़ता ले दिज साथ।
मिले जाइ निज पित जगनाथ ॥७॥
करि बंदन बैठो तबि पास।

१घर (बणाके)।
२(दा) सहुरा।
++देखो रास ४ अंसू अंक २४ दी हेठली टूक।
३नाल ब्रहमण ळ लै जावाणगे।

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