Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रतापसूरज ग्रंथ (राशि १) ७६
करहिण दास की सोच बिमोचन१ ॥४१॥
दास लखहिण निति को बिवहारा।
सदा करावहिण तिसी प्रकारा।
आमद खरच संभारनि करैण।
देनि लेनि निज इज़छ बिचरैण ॥४२॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे भाई रामकुइर प्रसंग
बरनन नाम त्रितियो अंसू ॥३॥
१नाश।