Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ७३

९. ।सपन दरशन॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>१०
दोहरा: करते हमन बिधान को,
बीत गए पच मास।
सौज हग़ारहु मण परी,
पावक भए प्रकाश ॥१॥
चौपई: मास असौज सुकल पख आयो।
नौमी दोसअनद अुपायो।
सरब ठौर ते पूज बडेरी१।
हमन सु मंत्र कीन बहु बेरी ॥२॥
पंच पहिर कौ, नअु दिन होवा२।
निस महि देवी दरशन जोवा।
सुपन बिखे मिलि करि जगमाई।
निज आवनि को दियो बताई ॥३॥
हे सुत! होमहु मंत्र समेता।
धरहु धान मुझ आवनि हेता।
समो होइ दरशन को जबै।
एक वार आवौण चलि तबै ॥४॥
सफल मनोरथ करहु तुहारा।
दै होण बर जिम रिदै मझारा।
सुपतहि सवा जाम कै जामू।
अुठे सपन जानो अभिरामू३ ॥५॥
सौच शनाने आनद महाना।
बसत्र शसत्र बैठे सवधाना।
दिजबर मिलो आनि थिर होवा।
कहो गुरू जिम सुपना जोवा ॥६॥
सुनि करि केशवदास अनदो।
जै जगदंबा कहि कहि बंदो।
सफलहिगी सभि किज़्रत हमारी।


१सारे थांवाण ते (देवी) बहुत पूजी दी है।
२पंज पहिर (रोग़ पूजा करदिआण) नौ दिन हो गए सन (नौमी थित वाले दिन)।
३सुते होए सवा पहिर रात रहिदी अुठे, (अुस) सुपने ळ चंगा जाणिआ।

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