Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) ७४९. ।विआह दी तिआरी मेल दा आवंा॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>१०
दोहरा: बासुर कितिक बिताइ करि, श्री गुर अरजन नाथ।
चितवति नदन बाह* को, बडि अुतसव के साथ ॥१॥
निशानी छंद: अगहनि१ बीतो मास जबि, पुन पूस२ सु आयो।
समै इहां अुतसाह को, जानो नियरायो।
महांदेव सोण मिलि गुरू, बैठे इक थाना।
करी वारता बहुत ही, परसंग जि नाना ॥२॥
बहुर बाह की बाति को, सबि ग़िकर सुनायो।
एक मास ही बिचि रहो, दिन निकट सु आयो।
बडो भ्रात अबि दूरि है, बड धरति बिरोधा।
नम्र भए, नहि मानही, राखहि अुर क्रोधा ॥३॥
चहियहि अबहि बुलावनो, इहु अुचित महाना।
सहत कुटंब सु आवनो, होवहि इस थाना।
महांदेव बोलो सुनति, भेजहु लिखि पाती।
को नर आछो जाइ कै, आनहि भलि भांती ॥४॥
सनमानहु सभि रीति ते, है भ्रात बडेरो।जोण जोण करि तिस आनियै, आछी बिधि हेरो।
परने३ मरने महि सरब, सनबंधि४ मिलते।
इही जगत की रीति है, सभि नर बरतंते ॥५॥
शादी तुमरै सदन है, रूठे सु मनाओ५।
भ्राता करहु इकज़त्र सभि, बडिता जिम पाओ।
शोभा हैबहु मेलि की, बंधुप समुदाया६।
जाति बिखै सो बडा हुइ, सभि सोण बनि आया ॥६॥
महांदेव के बाक को, सतिगुरु ने माना।
लिखी पज़त्रिका तबहि गुरु, बडिआइ महाना।
*श्री गुरू हरिगोबिंद जी दे विवाहां पर देखो रास ५ अंसू २७ अंक ४६ दी हेठली टूक।
१मज़घर।
२पोह दा महीना।
३विवाह।
४संबंधी।
५रुज़सिआण ळ मनाओ।
६सारे संबंधीआण दे मेल दी शोभा है।