Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ८०

बाजन१ की दिस थे तब नैन ॥२०॥तिन कहु देखति बाक बखाना।
हमरे बाग़ हुते इस थाना।
ले गमनति२ निति ब्रिज़त अखेरी३।
इनकी रेशम डोर लमेरी ॥२१॥
आडे४ इन बैठनि के जोइ।
सो लुटि गए न दिखियति कोइ।
आडे डोराण देहु मणगाइ।
जे तुमरे कहिबे महिण आइ ॥२२॥
सुनति खान बिगसो बिसमायो।
-देखहु कस५ मन कुछ नहिण लायो।
लाखहुण का धन घर ते गयो।
रिदे बिकार न तिस ते भयो ॥२३॥
द्रिशटि अगारी जो नहिण पाई।
सो लुटि गई रिदे इमि आई।
अपर वसतु की सुधि नहिण जानी।
ब्रिज़ति समानि६ महिद ब्रहगानी- ॥२४॥
महिमा महां जानि करि खान।
बंदि पान जुग७* करति बखान।
क्रिपा ठानि मुझ साथ चलीजै।
लवपुरि८ केतिक दिवस बसीजै ॥२५॥
जबि इज़छा पुनि हुइ हटि आवहु।
कदम आपने मुझ घर पावहु।
इज़तादिक बहु बिनै अुचारि।
ले संग चलो होइ असवार ॥२६॥

१बाग़ नामे पंछी।
२लै जाणदे सी।
३शिकार ळ।
४(बाग़ां दे बैठं दे) अज़डे।
५किसे तर्हां बी।
६इक तुज़ल ब्रितीहै।
७दोवेण हथ जोड़के।
*पा:-कर।
८लाहौर।

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