Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ८०

९. ।शाहजहां बीमार ते शाहग़ादे आकी॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>१०
दोहरा: अबि तुरकन की बारता, कछुक सुनहु बुधिवान!
करे खोट सतिगुरनि सोण, यां ते करौण बखान ॥१॥
बिना कहे सु प्रसंग को, सुनिते संसै होइ।यां ते सुनीए बिती जिम, गुर सोण बादत१ सोइ ॥२॥
शाहुजहां तुरकेश के, सुत अुपजति भे चार।
करति राज सभि देश को, बधो समाज अुदार ॥३॥
चौपई: चज़क्रवरति इम राज भयो है।
चार चज़क इक हुकम थियो है।
जहि तहि देशनि बिखे अशेश।
दोही सुनिते त्रास विशे ॥४॥
जिते न्रिपति सभि आगा कारी।
हाथ जोरि हुइ खरे अगारी।
रजपूतनि तनुजा के डोरे।
सुनि सुंदर लेवति करि जोरे२ ॥५॥
हिंदावइनि को महां कलक।
जथा अंक लागो सु मयंक।
जिन ते भयो अुपाइ न कोए।
धीर सूरता छोरि खलोए ॥६॥
तुरक अधीन होइ करि सारे।
आइ छिज़प्र, जबि लेति हकारे।
जहां पठावहि तहि चलि जाणही।
शकति हीन हुइ रहि अगवाही ॥७॥
किस पर किम जे रिस हुइ जाए।
बिकट मुहिंम पठहि मरिवाए३।
तनक हुकम जो मोरनि करिही।
लरहि, करहि अपने अनुसरही ॥८॥
पोशिश ग़हिर अग़ाहर४ लाइ।

१झगड़दिआण।
२बल नाल।
३करड़ी मुहिंम भेजके मरवादिंदे सी।
४गुझी विह।

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