Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १)९४

६. ।बाबा स्री चंद, लखमी चंद, वेदी वंस, ते अुदासीआण दा प्रसंग॥

दोहरा: सुनि कै सिंघनि सभिनि ते, परअुपकार बिसाल।
नौण सतिगुरु इतिहास जस, अुर बिचार तिस काल ॥१॥
चौपई: भाई रामकुइर सवधान।
कहिनि लगे गुर कथा महान।
जिस के पठति सुनति मन पावन।
चार पदारथ दै मन भावन१* ॥२॥
अपर महातम कहां सु कहीए।
अुज़तम सिज़खी कहु पद लहीए।
श्रोता होति भए सवधान।
श्रवन करन लागे रुचि ठानि२ ॥३॥
भाई रामकुइरो वाच ॥
चौपई: प्रथम चरन कलि३ काल बिसाला।
जहिण तहिण लागे करनि कुचाला।
मत बिसतरे४ अनेक कुढाले।
नहिण सिमरहिण सतिनाम सुखाले ॥४॥
केतिक मत५ गिनीए जग भए।
तनक६ सिज़धि७ लहि पंथ चलए।
परमेशुर को नहिण पहिचानै।
अपर बिधिनि अुपदेश बखानै ॥५॥
-पूरब८ जुगन बिखै तप जज़ग।
करि करि साधन भए ततज़ग९।
कलि महिण शकति हीन नर रहे।


१मन दी कामना देण वाली।
*पाछ-करि है पावन।२प्रीत धार के।
३कलिजुग।
४फैल गए।
५मग़हब।
६थोड़ी।
७सिज़धी।
८पहिले।
९ब्रहम गिआनी।

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