Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ९५

११. ।लाल सिंघ दी ढाल दी प्रीखा॥
१०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>१२
दोहरा: एक सिख सतिगुरू को,
पूरब ते चलि आइ।
लाल सिंघ तिस नाम है,
करि दरशन को चाइ ॥१॥
चौपई: जथा शकति करि अरपि अकोर।
बंदन करी हाथ जुग जोरि।
बैठो सभा मांहि गुर आगै।
हुती सिपर१ सिंघ देखनि लागे ॥२॥
गहि गहि हाथन बिखै सराहैण।
आछी आछी सभिनि कहाहै२।
द्रिशटि चलाइ प्रभू तबि देखी।
कहो समान अहै अवरेखी३ ॥३॥
जो शुभ है तिस लग करि गोरी४।
पार न परै फोरि करि मोरी५।
इस महि गुलका होवहि पार६।
कहां सराहैण सिपर अुदार७ ॥४॥
सुनि कै लाल सिंघ नहि जरी।
गरबति बोलो बच तिस घरी।
मोर सिपर को चरम कठन८।
गोरी कहां सकहि इस भंनि॥५॥
लगहि तड़क कै गिरहि सु पाछे।
यां ते बहु धनु ते लई आछे।
सुनि कलीधर पुन समुझाइ।
इह गोरी है बुरी बलाइ ॥६॥

१ढाल सी (तिस सिंघ दे कोल)।
२सारे कहिदे हन।
३सामान जिही दिखाई दिंदी है।
४जो चंगी हुंदी है अुस ळ गोली लगके।
५फोड़के मोरी करके पार नहीण लघदी।
६पर इस विचोण गोली लगके पार हो जावेगी।
७(फिर) बहुता की सलाहुंदे हो ढाल ळ।
८सखत है।

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