Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) ९८डकी डाकंी, भूत प्रेतं बकंते।
नची जोगणी, सीस बाल खिलते१।
किती दूर लौ, जंग खेतं बिथारे।
गुथी लुथ जुथं२, पगं पोथ डारे३ ॥५४॥
सुरं देखि सिंघानि, को जुज़ध सुज़धं।
कहैण धंन धंन, फिरैण गैन मज़धं।
मरे बीर चाली, महां ओज कै कै।
गुरू धान धारे, तजे प्रान घै कै ॥५५॥
दोहरा: तुरक हग़ारोण लड़ि मरे, बहुते हते तुरंग+।
भयो जंग पूरन तबै, श्रोता सुनहु प्रसंग ॥५६॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे पूरब ऐने मुकतसर जंग प्रसंग
बरनन नाम दसमो अंस ॥१०॥
१खिंडाए होए।
२समूह लोथां गुज़छे हो गईआण।
३पैराण दे नाल ढेर (दे ढेर दले) पए हन।
+पा:-तुरक अढाई सै मरे त्रै सै हते तुरंग।