Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १०२

७. ।गुर परनाली॥

दोहरा: *पंद्रहि सत खट बीस मैण,
जनम गुरू महाराज।
सज़त्रह संमति छिति रहे१,
अनिक गरीब निवाज ॥१॥
चौपई: घोर घाम भव जीव दुखारे२।
शशि सम३ अुज़दति४ करे सुखारे।
कोइ न जिन के अरो५ अगारी।
भए नम्रि अग़मति धरि भारी ॥२॥
जितकशकति जुति भे सभि तारे।
रवि सम अुदै छपे तबि सारे।
पंद्रह सत छिआनवेण६ मांहू।
मास असौज सरद रुति तांहू ॥३॥
क्रिशना७ दसमी पितरन दिन की।
प्रभू बिकुंठ गए सहि तन की८।
ऐरावती कूल अभिराम९।
तहिण करतार पुरा किय ग्राम ॥४॥
गुरू बसत्र को ले ससकारा।
नाम देहुरा बिदति१० अुदारा११।
तिस गादी गुर अंगद बैसे।
पोशश अपर पहिर न्रिप जैसे ॥५॥


*बाग़े लिखती नुसखिआण विच अगले हर अंसू दे आदि विच भाई राम कौर वाच पाठ आअुणदा
है, इह पाठ राम कअुर, राम कुइर आदि हन, पर भाव इको वकती तोण है।
१सज़तर (७०) साल धरती ते रहे।
२भानक (त्रिशना रूपी) तपत नाल संसार दे जीव दुखी सन।
३चंदरमां वाणू।
४प्रगट होके।
५अड़िआ।
६-१५९६।
७अंन्हेरे पज़ख दी।
८समेत सरीर दे।
९रावी दे सुंदर कंढे।
१०प्रगट है।
११स्रेशट।

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