Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १०७

गुरता गादी कीनि अबादी।
गन अुर दई गान कीशादी१ ॥२८॥
सोलहि सत इकतीसा२ फेर।
भादोण सुदि पूरनमा३ हेर।
तन को तजि बैकुंठ सिधारे।
हम से जिन बहु पतित अुधारे ॥२९॥
इक सौ खशट४ बरख बय लही।
संमत खशट५ और थी रही।
गुरता सहित दई हरखाए।
श्री गुर रामदास बैठाए ॥३०॥
लवपुरि महिण छज़त्री हरिदास।
महां सुशील सुक्रितन रास६।
खेम कुइर जिस के घर दारा।
हित करि निति पतिब्रति प्रतिपारा७ ॥३१॥
तिन ते अुतपति भए सु नद।
श्री गुर रामदास कुलचंद।
भए जु कुल भज़लन के भूखन८।
भानी तिन की सुता अदूखन९ ॥३२॥
सोढी बंस चंद१० कहु बाही।
रही जु बहु पित के ढिग चाही।
गोइंदवाल पुरी बज़खाती११।
तहां बसति बीते दिन राती ॥३३॥
तीन पुज़त्र अुपजे तिन केरे।


१समूह सिखां दे रिदे विच गिआन दी खुशी दिज़ती।
२-१६३१।
३पूरनमाशी।
४-१०६।
५छे बरस।६पुंनां दी खां।
७पालिआ।
८भज़लिआण दी कुल दे गहिंे, भाव गुरू अमर दास जी।
९पविज़तर।
१०भाव श्री गुरू रामदास जी नाल।
११प्रगट।

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