Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) १०५

चिंता बसि हुइ लिखि बहु बारी*।
फते खुदाइ दीनि लिय मारी ॥४२॥
इज़तादिक हरखति बहु बात।
करति कपूरे सोण मग जाति+।
जल सथान पिखि घालो डेरा।
बिन जाने जड़ मुदति बडेरा ॥४३॥
इति स्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम ऐने मुकतसर प्रसंग बरनन
नाम एकादशमोण अंस ॥११॥


*इथोण ते होर ऐसीआण पिज़छे आईआण थावाण तोण सपशट हो रिहा है कि मुज़ढ तोण सारा फसाद
औरंगग़ेब दा सी। कदे राजे ते तुरक, पर पुतली नचावनहार अुहो सी।
+चौधरी कपूरे ने नवाब दे इस निशचे ळ कि गुरू जी इथे मारे गए हन, हिलाअुण दा जतन
नहीण कीता, किअुणकि अुस दा प्रयोजन अुस ळ पिछे मोड़ लिजाण दा पूरा हो रिहा सी।

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