Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) १०७१४. ।भीमचंद दा पुज़त्र ते वग़ीर स्री नगर पुज़जे॥
१३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>१५
दोहरा: जतन अनेक बिचारि कै,
भीमचंद गिरराइ।
मानोण मंत्र वग़ीर को,
और न्रिपन समुदाइ१ ॥१॥
चौपई: २सुनो सैलनाथन! बच मेरे।
बाह समै आयो अबि नेरे।
लरिबे बिखै दिवस बहु लागैण।
पिखि दल बल कौ गुर नहि भागै ॥२॥
भीम जंग दुइ दिशि ते परै।
दोनहु चमूं सुभट बल धरैण।
हट नहि जाइ लाज निरबाहैण।
को जाने तबि का हुइ जाहै ॥३॥
बाह काज पूरन अबि करो।
पुन गुर संग लरो नहि टरो।
अबि रिस तजहु अपर मग गमनहु।
बहुर आइ गुर दल को दमनहु३ ॥४॥
फतेशाह को ले करि संग।
दिहु अुठाइ इत ते४ करि जंग।
सभिनि बिरोदी बनोण महान।
कैसे बसन देहि इस थान ॥५॥
बिघन बिसाल बाह महि डाला।
इस पलटोण मैण लेअुण बिसाला।
इज़तादिक कहि न्रिप समुझाए।
लरिबे ते तिससमैण हटाए ॥६॥
करो तार सुत हेतु पठावन।
निकट अमात५ कीनि समुझावनि।
१भीम चंद पहाड़ी राजे ते होर सारिआण राजिआण ने वग़ीर दी सलाह मंन लई।
२भीमचंद कहिदा है:-
३दंड दिओ।
४इथोण (पांवटे) तोण।
५वग़ीर।