Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) १०९११. ।श्री अंम्रितसर वापस आए॥
१०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>१२
दोहरा: जब श्री अरजन चलनि को, कहो सभिनि के मांहु।
दासी दास समूह जे, हरखति कीनि अुमाहि ॥१॥
कबिज़त: चारु असवारी करी सारी तबि तारी तहि
हेरि नर नारी को अुछाह भयो मन मैण।
संदन बहल अरु सकटे समाज भरे,
दास करेण कारज को लादी आनि तिन मैण१।
बडो बरटोहे थार दीरघ कराहे लीनि
और सभि बासन संभारे तिस छिन मैण।
बसन२ के भार भूर धरे करि पूरन को३
ब्रिखभ को जोरि कीनि तूरन गमन मैण ॥२॥
सुंदर सुरंग सजो संदन पै ग़रीदार,
अूरध अुतंग दै कलस चामीकर के४।
चंचल तुरंग बल संग भरे अंग जिन,
घुंगरू घमंकति सजाए बीच गर के।
जूले साथ जोरि कर, हेरे कछू तोर करि
फेरे पुन मोर करि खरे दर घर के५।
श्री हरि गोबिंद नद ले करि अुछंग गंग
आनद बिलद करि, बैठी बीच बरि के६ ॥३॥
पालकी अरूढ भए गुरू गुन गूढ महां
पंथ प्रसथानेहरखाने पुरि जानि को।
नद मुख चंद देखि गमनै सु मंद मंद,
दासी, दास, ब्रिंद सिख, संगतां महान को७।
रामदास नगरी मैण जाइ कै प्रवेश भए,
बादित अशेश बजवाए हरखान को।


१आके लदी (समिज़ग्री) गज़डिआण विच।
२बसत्राण।
३पूरन करके।
४सोने दे।
५घर दे दर ते आ खलोते।
६वड़के।
७बहुतीआण संगतां।

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