Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ११२

ब्रिधे सरीर सुखद थल तांही१ ॥११॥
संमत त्रै बिंसत२ खट मास।
दिवस चतुर दस लै सुखरास३।
गुरता गादी पर थिति रहे।
श्री हरिराइ दास दुख दहे ॥१२॥
संमत सज़त्रह सत अशटादश४।
कातक वदि नवमी महिण सुख बसि।
श्री हरि क्रिशन तखत गुरिआई।
बैठे सिसु५ अति बैस सुहाई ॥१३॥
दिज़ली महिण गमने किसि हेत।
तहिण तन तागो क्रिपा निकेत।
जुग संमत६ अरु पंच महीने।दिन अुनीस गुरता पद कीने ॥१४॥
दोहरा: संमत सज़त्रा सै बिते, अूपर बीस रु एक७।
चेत सुदी चौदस दिवस, श्री गुरु जलधि बिबेक८ ॥१५॥
चौपई: एक जाम खट घटी बिताए।
निसा९ बिखे श्री गुरू समाए।
बाबा कहो बकाले मांहि१०।
सतिगुर तेग बहादर तांहि ॥१६॥
अरपति भए तिनहि गुरिआई।
तखत बिराजे सिख सुखदाई११।
श्री गुर हरि गोबिंद के नद१२।


१सुख दाते सरीर वडे होए ओसे थां (भाव कीरतपुर विच)।
२२३।
३भाव गुरू जी।
४१७१८।
५बालक (अवसथा)।
६दो साल।
७-१७२१।
८गिआन दे समुंदर।
९रात्री।
१०बाबा बकाले विच है (सतिगुरू तेग बहादर जी)।
११सिज़खां ळ सुख देण वाले (गुरू तेग बहादर जी)।
१२सपुज़तर।

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