Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ११०

११. ।शिकार। बासरके ते बीड़ दरशन॥
१०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>१२
दोहरा: इस बिधि हरिगोविंद गुरु, करति बिलास अुलास१।
दासनि के हरि त्रास को,दैण आपनि भरवास ॥१॥
चौपई: एक दिवस श्री अंम्रितसर के।
तट पर बैठे मज़जन करि के।
दुखभंजनि बदरी असथान।
सुभट मसंद सिज़ख तहि आनि ॥ २ ॥
सतिगुर के चहु गिरद सुहाए।
जथा चंद परवारनि पाए२।
दुख भंजनि को सकल प्रसंग।
भाना बूझति भा गुरु संग ॥ ३ ॥
श्री हरि गोविंद तबहि बखाना।
इस बदरी ते तीरथ जाना।
कुछ चौथे सतिगुर करि गए।
श्री गुरु पंचम खोजति भए ॥ ४ ॥
राज सुता कुशटी पति धरो।
आपि जाइ कित मांगनि करो।
बाइस को पिखि कुशटी गिरो।
जल मज़जन ते भा तन हरो३ ॥ ५ ॥
आइ पिखो परतीत न धरै।
-अपर पुरख इहु४ -शंका करै।
श्री सतिगुर जी निकटि सिधारी।
सगरी गाथा दुहिनि अुचारी ॥ ६ ॥
सुनि प्रसंन हुइ गुर तबि कहा।
-तेरो पति इहु कुशटी अहा।
चलि हम को सो थान दिखावहु।


१आनद नाल।
२जिवेणचंद ळ परवार पिआ हुंदा हैण।
३नवाण निरोआ।
४इह ओपरा आदमी है।

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