Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ११३

सोढी बंश गगन१ के चंद ॥१७॥
मात नानकी जिन की जानि।
जनम सुधासर पुरि के थान।
श्री गुजरी महिला शुभ बाही।
तप को तेज पुंज जिन मांही ॥१८॥
तिन केपुज़त्र भए बड सूरे।
देग तेग दुहूंअन के++ पूरे।
जिन धरि कलगी शज़त्र बिदारे२।
तुरक पहारी अरे सु मारे ॥१९॥
इम श्री तेग बहादर भए।
दास अनेक अुधारन कए।
संमत दस अर सपत महीना।
दिन इकीस गुरता पद लीना ॥२०॥
तन तागन को समो सु पाइ।
तुरकेशुर सिर दोश चढाइ।
हिंदवाने की राखन कान३।
दियो सीस जनु करि कै दान ॥२१॥
संमत सज़त्रा सहस बतीस४।
मंगसिर५* सुदी पंचमी थीस+।
सुरगुर६ दिवस जाम जुग७ आवा।
अूपर घटिका एक बितावा ॥२२॥
सतिगुर तेग बहादर राइ।


१अकाश।
++पा:-मेण।
२वैरी नाश कीते।
३लाज।
४-१७३२।
५मज़घर।
*पा:-मगसर।
+पा:-बीस। शायद बीस तोण मुराद वीह प्रविशटे दी होवे, पर बारवीण रास विच कवि जी मज़घर
पंचमी सुदी पछानहु ही तारीख देणदे हन।
(अ) बीस = वीस विसवे, भाव निशचित।
६वीरवार।
७दोपहिरा।

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