Sri Guru Granth Darpan

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जदों अगम ते बेअंत प्रभू इक आप ही सी, तदों दॱसो, नरकां ते सुरगां विच आउण वाले केहड़े
जीव सन?

जदों सुते ही प्रभू त्रिगुणी माइआ तों परे सी, (भाव, जदों उस ने माइआ रची ही नहीं सी) तदों
दॱसो, किथे सन जीव ते किथे सी माइआ?

जदों प्रभू आप ही आपणी जोतिजगाई बैठा सी, तदों कौण निडर सी ते कौण किसे तों डरदे सन?

हे नानक! अकाल पुरख अगम ते बेअंत है; आपणे तमाशे आप ही करन वाला है ।२।

अबिनासी सुख आपन आसन ॥ तह जनम मरन कहु कहा बिनासन ॥ जब पूरन करता प्रभु सोइ ॥
तब जम की त्रास कहहु किसु होइ ॥ जब अबिगत अगोचर प्रभ एका ॥ तब चित्र गुपत किसु पूछत
लेखा ॥ जब नाथ निरंजन अगोचर अगाधे ॥ तब कउन छुटे कउन बंधन बाधे ॥ आपन आप आप
ही अचरजा ॥ नानक आपन रूप आप ही उपरजा ॥३॥ {पंना २९१}

पद अरथ :आसनतख़त, सरूप । तहओथे । त्रासडर । जम{शकट. यम}मौत ।
अबिगत{शकट.अय#त}अद्रिशट प्रभू । अगोचरजिस तक सरीरक इंद्रिआं दी पहुंच नाह
होवे । चित्र गुपतजीवां दे कीते करमां दा लेखा पुॱछण वाले । अगाधअथाह । अचरजा
हैरान करन वाला । उपरजापैदा कीता है ।

अरथ :जदों अकाल पुरख आपणी मौज विच आपणे ही सरूप विच टिकिआ बैठा सी, तदों दॱसो,
जंमणा मरना ते मौत किथे सन?

जदों करतार पूरन प्रभू आप ही सी, तदों दॱसो, मौत दा डर किस हो सकदा सी?

जदों अद्रिशट ते अगोचर प्रभू इक आप ही सी तदों चित्र गुपत किस लेखा पुॱछ सकदे सन?

जदों मालक माइआ-रहित अथाह अगोचर आप ही सी, तदों कौण माइआ दे बंधनां तों मुकत सन
ते कौण बंधनांविच बॱझे होए हन?

उह अचरज-रूप प्रभू आपणे वरगा आप ही है । हे नानक! आपणा आकार उस ने आप ही पैदा
कीता है ।३।

जह निरमल पुरखु पुरखपति होता ॥ तह बिनु मैलु कहहु किआ धोता ॥ जह निरंजन निरंकार
निरबान ॥ तह कउन कउ मान कउन अभिमान ॥ जह सरूप केवल जगदीस ॥ तह छल छिद्र लगत
कहु कीस ॥ जह जोति सरूपी जोति संगि समावै ॥ तह किसहि भूख कवनु त्रिपतावै ॥ करन करावन
करनैहारु ॥ नानक करते का नाहि सुमारु ॥४॥ {पंना २९१}

पद अरथ :पुरखुआकाल पुरख । पुरखपतिपुरखां दा पती, जीवां दा मालक । निरबान
वाशना-रहित । जगदीसजगत दा (ईश) मालक । छलधोखा । छिद्रऐब । कीसकिस ?
त्रिपतावैरॱजदा है । सुमारुअंदाज़ा ।

अरथ :जिस अवसथा विच जीवां दा मालक निरमल प्रभू आप ही सी ओथे उह मैल-रहित सी,
तां दॱसो, उस ने केहड़ी मैल धोणी सी?

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