Sri Guru Granth Darpan
कमी है? ।३।
जिस प्रभू दीआं (वडिआईआं दीआं) गॱलां हरेक जीव कर रिहा है, उह प्रभू सभ ताकतां दा मालक
है, उह साडा (सभनां दा) खसम है ते सभ पदारथ देण वाला है ।४।
कबीर आखदा हैसंसार विच केवल उही मनुॱख गुणां वाला है जिस देहिरदे विच (प्रभू तों बिना)
कोई होर (दाता जचदा) नहीं ।५।३८।
शबद दा भाव :प्रभू सभ जीवां पालण वाला है, हरेक दे अंग-संग है, उस दे घर विच कोई
कमी नहीं । उस विसार के कोई होर आसरा तॱकणा बड़ी हाणत वाली गॱल है ।३८।
कउन को पूतु, पिता को का को ॥ कउनु मरै, को देइ संतापो ॥१॥ हरि ठग, जग कउ ठगउरी
लाई ॥ हरि के बिओग, कैसे जीअउ मेरी माई ॥१॥ रहाउ ॥ कउन को पुरखु, कउन की नारी ॥
इआ तत लेहु सरीर बिचारी ॥२॥ कहि कबीर ठग सिउ मनु मानिआ ॥ गई ठगउरी, ठगु
पहिचानिआ ॥३॥३९॥ {पंना ३३१}
पद अरथ :कउन कोकिस दा? का कोकिस दा? कोकौण? देइदेंदा है । संतापोकलेश
।१।
कउ । ठगउरीठग-मूरी, ठग-बूटी, धतूरा आदिक, उह बूटी जो ठॱग लोक वरतदे हन
किसे ठॱगण लई । बिओगविछोड़ा । जीअउमैं जीवां । मेरी माईहे मेरी मां!
।१।रहाउ।
पुरखुमनुॱख, मरद, खसम । नारीइसती, वहुटी । इआइस दा । इआ ततइस
असलीअत दा । सरीरमनुॱखा जनम ।२।
कहिकहै, आखदा है । मानिआमंन गिआ, पतीज गिआ, इक-मिक हो गिआ ।३।
अरथ :किस दा कोई पुॱतर है? किस दा कोई पिउ है? (भाव, पिउ ते पुॱतर वाला साक सदा
काइम रहिण वाला नहीं है, प्रभू ने इक खेड रची होई है) । कौण मरदा है ते कौण(इस मौत दे
कारन पिछलिआं ) कलेश देंदा है? (भाव, ना ही कोई किसे दा मरदा है अते नाह ही इस तर्हां
पिछलिआं कलेश देंदा है, संजोगां अनुसार चार दिनां दा मेला है) ।१।
प्रभू-ठॱग ने जगत (दे जीवां) मोह-रूप ठग-बूटी लाई होई है (जिस करके जीव संबंधीआं दा
मोह रॱख के ते प्रभू भुला के कलेश पा रहे हन), पर हे मेरी मां! (मैं इस ठग-बूटी विच नहीं
फसिआ, किउंकि) मैं प्रभू तों विॱछड़ के जीऊं ही नहीं सकदा ।१।रहाउ।
किस (इसती) दा कोई खसम? किस (खसम) दी कोई वहुटी? (भाव, इह इसती पती वाला साक
भी जगत विच सदा-थिर रहिण वाला नहीं, इह खेड आख़िर मुॱक जांदी है)इस असलीअत
(हे भाई!) इस मनुॱखा सरीर विच ही समझो (भाव, इह मनुॱखा जनम ही मौका है, जदों इह
असलीअत समझी जा सकदी है) ।२।