Sri Guru Granth Darpan

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आख़र पंजवां तख़त साहिब असथापन करन बारे वीचार भी तां पंथ दे साहमणे आ ही गई है ।
अजिहे सवालां उॱते गंभीरता अते ठर्हंमे नाल वीचार होणी चाहीदी है ।

विरोधीसॱजणां दा गिला है कि स्री गुरू गोबिंद सिंघ जी महाराज दी मुख-वाक बाणी स्री गुरू ग्रंथ
साहिब विच किउं दरज नहीं कीती जांदी । इह बड़ा गंभीर सवाल है । पर इॱथे इक होर औकड़
भी है । अजे तक इसे गॱल उॱते मत-भेद चलिआ आ रिहा है कि स्री दसम ग्रंथ साहिब दी सारी
बाणी ही स्री मुख-वाक है जां इस दे कोई ख़ास ख़ास हिॱसे ।

सो, पहिलां तां सारे समुॱचे गुरू-पंथ दे प्रतीनिध इकॱठ विच इह निरना होणा चाहीदा है कि स्री
मुख-वाक बाणी कितनी कु है । उस तों पिछों ही इह विचार हो सकेगी कि की गुरू-पंथ इह
अधिकार प्रापत है जु स्री दसम पातिशाह जी दी बाणी स्री गुरू ग्रंथ साहिब विच दरज कर लए


पंथ दे किसे इॱक जॱथे इह हॱक नहीं हो सकदा कि उह सारे पंथ दे थां आप ही कोई फ़ैसला कर
लए । इस तर्हां खेरू-खेरू हो जाण दा भारी ख़तरा है । किसे इॱक जॱथे वॱलों, स्री गुरू ग्रंथ साहिब
विच दरज-होई बाणी दे विरुॱध खर्हवी कलम चुॱकणी भी बहुत हानीकारक कंम है ।

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जैसे तउ सफल बन बिखै, बिरखा बिबिधि, जा कउ फल मीठे, खगु ता पहि चलि जात है ॥ जैसे
परबत बिखै, देखीअहि पाखान बहु, जा महि हीरा खोज, ताहि खोजी ललचात है ॥ जैसे तउ जलधि
मधि, बसत अनंत जंत,मुकता अमोल जा महि, हंसु खोजि खात है ॥ तैसे गुर चरन सरन हरि
असंख सिॱख, जा महि गुर-गिआन, ताहि लोकु लपटात है ॥३६६॥ {भाई गुरदास जी

पद अरथ :सफल बन बिखैफलां वाले (रुॱखां दे) जंगल विच । बिबिधिकई किसमां दे ।
खगुपंछी । पहिपास, कोल, उते ।

बिखैविच । देखीअहिवेखे जांदे हन । पाखानपॱथर । खोजभाल । ललचात हैलालच
करदा है ।

जलधिसमुंदर । मधिविच । बसतवॱसदे हन । मुकतामोती । खोजिखोज के, लॱभ के ।

असंखअणगिणत । जा महिजिस दे अंदर, जिस दे हिरदे विच । लोकुजगत । लपटात है
चरनीं लॱगदा है ।

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अते
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इस लेख विच असां इह वेखणा है कि कबीर जी दी बाणी गुरू नानक साहिब ने आप ही लिआंदी
सी, गुरू अरजन साहिब ने इकॱठी नहीं कीती ।

(१) जीवातमा ते परमातमा दे मिलाप विआह दे दिशटांत दी राहीं कबीर जी आसा राग दे
इक शबद विच इउं बिआन करदे हन :

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