Sri Guru Granth Darpan

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भाई! कौण किसे दी मां? कौण किसे दा पिउ? कौण किसे दा पुॱतर? कौण किसे दी वहुटी? (जदों
सरीर नालों साथ मुॱक जांदा है तदों) कौण किसे दा भरा बणदा है? (कोई नहीं) ।१।रहाउ।

हे भाई! इह धन धरती सारी माइआ जिन्हां आपणे समझी बैठा है, जदोंसरीर नालों साथ
मुॱकदा है, कोई चीज़ भी (जीव दे) नाल नहीं तुरदी । फिर जीव किउं इहनां नाल चंबड़िआ
रहिंदा है? ।१।

हे भाई! जिहड़ा प्रभू गरीबां उते दइआ करन वाला है, जो सदा (जीवां दे) दुॱखां दा नास करन
वाला है, तू उस नाल पिआर नहीं वधांदा । नानक आखदा हैहे भाई! जिवें रात दा सुपना
हुंदा है तिवें सारा जगत नासवंत है ।२।१।

सारंग महला ९ ॥ कहा मन बिखिआ सिउ लपटाही ॥ या जग महि कोऊ रहनु न पावै इकि
आवहि इकि जाही ॥१॥ रहाउ ॥ कां को तनु धनु संपति कां की, का सिउ नेहु लगाही ॥ जो दीसै
सो सगल बिनासै जिउ बादर की छाही ॥१॥ तजि अभिमानु सरणि संतन गहु मुकति होहि छिन माही
॥ जन नानक भगवंत भजन बिनु सुखु सुपनै भी नाही ॥२॥२॥ {पंना १२३१}

पद अरथ :कहाकिउं? मनहे मन! बिखिआमाइआ । सिउनाल । लपटाही
चंबड़िआ होइआ हैं । या जग महिइस जगत विच । इकि{लफ़ज़ इक तों बहु-वचन} ।
आवहिआउंदे हन, जंमदे हन । जाहीजांदे हन, मरदे हन ।१।रहाउ।

कां कोकिस दा? संपतिमाइआ । का सिउकिस नाल? नेहुपिआर । लगाहीतू ला रिहा
हैं । सगलसारा । बिनासैनास हो जाण वाला है । बदरबॱदल । छाहीछां ।१।

तजिछॱड । गहुफड़ । होहितू हो जाहिगा । सुपनैसुपने विच ।२।

अरथ :हे मन! तू किउंमाइआ नाल (ही) चंबड़िआ रहिंदा है? (वेख) इस दुनीआ विच (सदा
लई) कोई भी टिकिआ नहीं रहि सकदा । अनेकां जंमदे रहिंदे हन, अनेकां ही मरदे रहिंदे हन
।१।रहाउ।

हे मन! (वेख) सदा लई नाह किसे दा सरीर रहिंदा है, नाह धन रहिंदा है, नाह माइआ रहिंदी
है । तू किस नाल पिआर बणाई बैठा हैं? जिवें बॱदलां दी छां है, तिवें जो कुझ दिॱस रिहा है सभ
नासवंत है ।१।

हे मन! अहंकार छॱड, ते, संत जना दी सरन फड़ । (इस तर्हां) इक छिन विच तू (माइआ दे
बंधनां तों) सुतंतर हो जाहिंगा । हे दास नानक! (आखहे मन!) परमातमा दे भजन तों बिना
कदे सुपने विच भी सुख नहीं मिलदा ।२।२।

सारंग महला ९ ॥ कहा नर अपनो जनमु गवावै ॥ माइआ मदि बिखिआ रसि रचिओ राम सरनि
नही आवै ॥१॥ रहाउ ॥ इहु संसारु सगल है सुपनो देखि कहा लोभावै ॥ जो उपजै सो सगल बिनासै
रहनु न कोऊ पावै ॥१॥ मिथिआ तनु साचो करि मानिओ इह बिधि आपु बंधावै ॥ जन नानक सोऊ
जनु मुकता राम भजन चितु लावै ॥२॥३॥ {पंना १२३१}

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