Sri Nanak Prakash

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१९९अधाय पंचम
५. श्री गुरू नानक जी दी बाल लीला॥

{गुरू जा दा मन पसंद भोजन} ॥१४॥
बिधि से वैराग प्रद, हरि से गिआन पाल
कबिज़त:
शिव से बिकार नाश सतिगुर दास के
सीतकर जैसे सीत करि सो बिशागनि ते
तिमर हरन से तिमर मोह फांस के
धाम रिदै शुज़ध मज़ध दीपक से दीप दिपै
माया भिंन जीव को दिखावैण सु प्रकाश के
चरन शरन कर परन, हरन डर
तारन तरन अरनव भव नाश के ॥१॥
बिधि=ब्रहमा से=वरगे प्रद=दाता संस: प्रद:॥
हरि=विशंू पाल=पालन वाले, भाव दे के देई रज़खं वाले
सीतकार=चंद्रमां
सीत करि=सीतल करन वाले, ठढ पाअुण वाले
बिशागनि=विशे रूपी अज़ग संस: विखय अगि॥
तिमरहरन=सूरज तिमर=हनेरा धाम=घर
रिदै=ह्रिदय, दिल शुज़ध=साफ मज़ध=विच
दीपक=दीवा दीप=जोत दिपै=जगदी है
सु प्रकाश=सु प्रकाश=भला प्रकाश करके भाव गान प्रकाश दे के
परन=आस्रा हरन=हर लैं वाले
तारन=तरन वाले तरन=जहाग़संस:तरण॥
अरनव=अरणव=समुंद्र भव=संसार
नाश=नाश करनवाले, मुराद है डोब लैं वाले, इह समुंदर दा विशेशं है
(अ) इस दा अरथ ऐअुण बी करदे हन, (संसार) समुंद्र (दे भै) ळ नाश करन वाले
हन
(ॲ) ऐअुण बी लगदा है:-
भव=जनम नाश=मरन


मूल विच कवी जी ने अधाय दे अरंभ विच नहीण लिखिआ कि अमका अधाय अरंभ हुंदा है,
पर अधाय दे अंत विच लिखिआ है:-'इत श्री..... धाइ' असीण जो हुण तक अधाय दे
आरंभ विच-फलांा अधाय'-लिखदे आए हां, पाठकाण दी सुगमता वासते सी हुण अज़गोण ळ
असीण अधाय दे अरंभ दी आपणी इह मोटी सूचना नहीण दिआणगे, हर सफे दे अुते लीकोण बाहर
हर सफे दे अधाय दा अंग अधाय लभण विच सहायक होवेगा ते हर अधाय दे आदि विच,
अुस अधाय विच आअुण वाले प्रसंग ते अधाय दी गिंती ब्रीक अज़खराण विच दिंदे जावाणगे

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