Sri Nanak Prakash

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होश भई फरमोश२ रिदै
नहिण गोश३ सुनैण, मन जोश न आवै
बोलति बोल न काहूं बिलोकहिण४
ना किस लोक सोण भेद बतावैण ॥४६॥
मानव भेव न जानव५, जो मन
आनव६, सो निज७ की सठताई८
को अुकतं कछु९, को बकतं१० कछु
बावर भा? किधौण भूत लगाई?
नानकी एक रही अुर मैण थिर
मेरु११ समान न सोइ डुलाई
नानक की क्रिति बेगहि बात सी
पात अुडे नर१२, सोन अुडाई१३ ॥४७॥
दोहरा: भ्रात करहि सोई भली, बनै न कहिन हमार
है अलपग सरबज़ग की, मेटहि क्रिज़त गवार१४ ॥४८॥इति श्री गुर नानक प्रकाश ग्रंथे पूरबारधे मोदीखाना तजनि प्रसंग बरनन
नाम अुनतीसमो अधाय ॥२९॥
विशेश टूक स्री गुरू जी दा वेईण प्रवेश करके त्रै दिन अपणे शरीर दा किसे ळ दरशन
ना होण देणा ते परमेशुर दे दर जाण ते बखशिश प्रापत करनी आदि
आतमक मंडल दे क्रिशमे हन सचखंड अदेश, अथांव टिकाणा है, जिस
दा रूप रेख नहीण, फेर ओह हर थावेण है वाहिगुरू है, ते अुसदी है दा
जद टिकाणा आखो तां कही दा है सच दे खंड विच, मुराद इह नहीण कि
अुह खंड कोई देश है पर सदा अदेश ते फेर सरब देशी है गुरू जी दा


१पैर
२भुज़ल गई
३कंनीण
४नहीण किसे ळ वेखदे
५नहीण जाणदे
६आअुणदी है
७अपणी
८मूरखता
९कोई कुछ कहिंदा है
१०कोई कुछ बकदा है
११सुमेर
१२गुरू जी दी करनी हवा दे वेग जेही है पज़त्राण वाणू मनुखां दे (निशचे अुस हवा अगे) अुडे
१३अुह (नानकी) ना डोली
१४अलपज़ग हो के सरबज़ग दी क्रित ळ मेटे सोमूरख है

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