Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) १६६२०. ।बेड़ी दी सैल। इक धनी दी ळह ळ पुज़त्राण दा वर॥
१९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>२१
दोहरा: खान पान करि सतिगुरू, सुठ प्रयंक पर सैन।
सुख सोण सकल बिताइ कै, अुठे मिटी जबि रैन ॥१॥
सैया: सौच शनान जथावत कीनसि
बालिक शाहुनि के पुन आए।
कै मन भावति भोजन को१
मिलि आपस मैण शुभ खेल मचाए।
एक हुतो सिस, बाक कहो तिस
श्री गुरु जी! सलिता समुदाए।
आपने धाम की कीनि तरी२
अभिलाख जथा बिचरैण सभि थांए ॥२॥
मो पित भी चहि कै सु भनो
-पद पंकज आपनि देहु छुहाए-।
खेल करैण जल बीच फिरैण
नवका सु तरैण बहु दूर भजाए।
यौण सुनि कै सभि बाल भनैण
गुर जी चलिये इह नीक बताए।
बूझि कै३ मात, क्रिपाल को संग लै,
गौन करो दरिआवन थाएण४ ॥३॥
सेवक संग अनेक समेत
बिबेक के सागर जाति भए।
शाहु ने आनि प्रशादि धरो
अरदास करीबरताइ दए।
श्री पद पंकज चारु अुठाइ
टिकाइ भले नवका पै थिए५।
बैठि चलावति भे जल मैण
मुद होति अुदोति समूह लिए ॥४॥
१करके भोजन मन भांवदा।
२भाव आपणे घर दी बेड़ी बणाई है।
३पुज़छ करके।
४दरिआ दी थां वज़ल।
५बेड़ी अुपर इसथित कीते।