Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) १६६

२१. ।धन जाण ते सोग ना करना। लीकाण दा द्रिशटांत॥
२०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>२२
दोहरा: *इम घेरा बड पर रहो, लरहि खालसा जाइ।
इक दिन तारी प्रभु करी, बड रणजीत बजाइ ॥१॥
चौपई: अुत ते सकल गिरेशर चड़्हे।
मारू बजे जथा भट लड़े।
रणसिंे सरनाई ढोल।
तुररी नाद नगारे बोल ॥२॥
कलीधर है कै असवार।
चढो खालसा आयुध धारि।
जहि गिरपतनि मोरचे करे।
डेरे करे दूर जहि परे ॥३॥
तित दिश को गुर अज़ग्र सिधारे।
छुटे तुफंगनि के कड़कारे।
जुटो खालसा जंग मझारा।
जै बहु बारी करे हंकारा१ ॥४॥
आगे वधो चलावति गोरी।
दोनहु दिशि के अुर सिर फोरी।
सभि गिरपती ढुके तबि आई।
लै लै निज सिपाह समुदाई ॥५॥जबि आपस महि दै दल जुज़टे।
गुलकाण लगि लगि अंगन फुज़टे।
सनमुख होइ नहीण मुख फेरे।
बजो सार सोण सार बडेरे ॥६॥
खोवन सिंघन को हंकार।
गुरू मुरे तबि जंग मझार।
पीछे खाइ शकिसत पलाई२।
हटे सकल ही करति लराई ॥७॥
जो सिंघ हटते वधे पहारी।


*इह सौ साखी दी ३८ वीण साखी है।
१बहुत वैरी जै करने कर हंकार हो गिआ सी।
२पिज़छे हार खा के (खालसे दी फौज) दौड़ी।

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