Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) १७०

२१. ।रतन राइ दी दरशना लई तारी॥
२०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>२२
दोहरा: अबि इह* भूपति की कथा, कहनि बनै इस बान।
गन श्रोता सुनीअहि सकल, बनहु सुचित सवधान ॥१॥
चौपई: श्री गुर तेग बहादर धीर।
गमने देश कामरू तीर।
बिशन सिंघ न्रिप काज बनायो।
तिस नरिंद्र को बोलि मिलायो१ ॥२॥
जबि इत ऐबो कीनी तारी।
पसरो सुजसु जहां कहि भारी।
देश असाम केर महिपाला।
जिस के पुज़त्र न हुइ किस काला ॥३॥
करि करि थको अनिक अुपचार।
बीत गयो तरुनापन चारु२।
सुनि कै गुर जसु मुदति बिलद।
-जन की पुरहि कामना ब्रिंद- ॥४॥
अंतहिपुरि३ को ले निज साथ।
मिलो आइ जहि सतिगुर नाथ।
अनिक अकोर अरप करि धरे।दो करि जोरि निहोरनि करे ॥५॥
सुति अभिलाखा अरग़ गुजारी।
सुनि करि सतिगुर करुना धारी।
हुती हाथ महि अज़छर छाप४।
न्रिपति अुरू पर५ लाई आप ॥६॥
कहो बाक बर को६ तबि तिसै।
अुपजै पुज़त्र तोहि घर बिसै७।

*पाठ इक होणा है, कलम अुकाई नाल इह हो गिआ जापदा है।
१भाव कारू देश दे राजे ळ बुलाके बिशन सिंघ नाल मिलाइआ सी।
२सुहणी जुवानी।
३राणी ळ।
४अज़खराण वाली मोहर।
५पज़ट अुज़ते।
६वर दा वाक।
७बिखै।

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