Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३१

होवे, जै होवे। परंतू इह अरथ ग़रा खिज़च नाल लाअुणा पैणदा है। तीसरी
तुक दा पहिला अज़ध-(अुस परमेशर दा) भजन धरती ते प्रगट (कीता है)।
६. इश गुरू-श्री गुरू रामदास जी-मंगल।
सैया: हरता बिघनान महां अघ को
अुर आतम गान प्रकाशति जोण हरि।
हरि देति बसाइ सु दासन के
कमलासन धावति जाणहि भजे हरि।
हरि बंस विखे अवतार भए
हति रावं को लिय संग चमूं हरि।
हरि दास तनै रमदासगुरू
म्रिग मोह सणघारति जोण बड केहरि ॥११॥
हरता = हर लैं वाला, दूर करन वाला।
बिघनान = बिघनां ळ। बिघन दा बहूबचन। अघ = पाप।
आतम गान = आपणे आप दा गिआन। अपणे तज़त सरूप दा गिआन
आतमा दा गिआन।
हरि = हनेरे ळ जो हर लवे सो-सूरज।
हरि = पापां ळ जो हर लवे सो-वाहिगुरू।
कमलासन = कमल है आसन जिस दा सो-ब्रहमां।
जाणहि = जिसळ, जिन्हां ळ।
हरि = शिवजी। ।संस: हरि = शिव॥
हरि बंस = सूरज बंस। हति = मारिआ। चमूं = सैना।
हरि = जो लोकाण दे हथोण चीग़ां खोह लवे सो-बाणदर।
हरिदास = श्री गुरू रामदास जी दे पिता जी दा नाम (भाई) हरीदास या हरिदास
(= वाहिगुरू दा सेवक) सी।
तनै-पुज़त्र। म्रिग = हरन। पर म्रिग दा अरथ अुह हाथी बी है जिस दे मसतक विच
चिज़टा तिलक हुंदा है।
संघारत = मारदे हन। ।संस: सणहार ॥
बड केहरि = वज़डा शेर। बज़बर शेर।
अरथ: (अरथ तीसरी तुक तोण तुरेगा, फिर चौथी ते फिर पहिली दूजी):- (त्रेते जुग
विखे इक राम जी) सूरज बंस बिखे अवतारी होए सन (जिन्हां ने)बाणदराण दी
सैनां नाल लैके रावं ळ मारिआ सी, (पर कलजुग विच) रामदास जी गुरू
(अवतार) होए हन जो (श्री) हरिदास (जी) दे सपुज़त्र (कहिलाए, इह गुरू
जी) मोह रूपी हाथी ळ शेर बज़बर दी तर्हां मारदे हन। (एह) महांन पापां ते
(कठन) विघनां ळ दूर करन वाले (ते) ह्रिदे (विच) सूरज वाणू आतम
गिआन दा प्रकाश करन वाले हन, अपणे दासां दे (हिरदे विच) वाहिगुरू

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