Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) २९
३. ।करतार पुर दी कथा॥
२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>४
दोहरा: जित कित नर खोजनि लगे, जितिक दार बड चाहि।
करी बिलोकनि ग्राम बहु, कतहूं प्रापति नांहि ॥१॥
चौपई: श्री अरजन के निकटि मसंद।
करी अरग़ नहि दार बिलद।दूर कि निकटि ग्राम समुदाइ।
करे बिलोकनि जित कित थांइ ॥२॥
हुइ प्रापति, दे दरब मंगावैण।
जथा हुकम घर तथा बनावैण।
आगै जिम रावर की मरग़ी।
सो हम करो चहैण सतिगुर जी! ॥३॥
जबहि मसंदनि एव अुचारी।
इक सिख बैठो सभा मझारी।
हाथ जोरि तिन अरग़ बखानी।
एक सिंसपा१ खरी महानी ॥४॥
जिस के सम नहि दूर कि नेरे।
पीन२ बडी अरु दीह३ घनेरे।
बिन सतिगुर सो हाथ न आवै।
को नहि तिह दल तोरनि पावै ॥५॥
को इक शकतिवंति तिस मांही।
बसति बितो चिरकालहि तांही।
बीस बीस कोसिक के ग्रामू।
मानहि जाइ करति प्रणामू ॥६॥
गन वसतुनि को अरपन करैण।
अनिक कामना अुर मैण धरैण।
जित कित के नर सीस झुकावैण।
नहि त्रिसकार करैण, डरपावैण ॥७॥
सुनि करि सतिगुर बाक बखानेण।
१टाहली।
२मोटी।
३लमी (अ) भारी।