Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) २९
३. ।मज़खं शाह॥
२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>४
दोहरा: गुरता महि रौरा परो,
ठीक नहीण ठहिराइ।
सकल सिज़ख संगति रिदै,चहिति गुरू बिदताइ ॥१॥
चौपई: मज़खं शाहु+ एक सिख भारा।
गुरुसिज़खी को महद अधारा।
करि सौदा बहु बढो जहाज।
अनिक वसतु ले बणजनि++ काज ॥२॥
देशांतर महि बेचो जाइ।
तहि की वसतु खरीद कराइ।
धरि जहाज पर हटो बहोर।
बीच समुंद्र जहां जल घोर ॥३॥
तुंग तरंग बिलद१ अुछालैण।
जीव करोरनि जुति बरणालै२।
बेग प्रभंजन३ को बहु पाइ।
चलो जहाज अुडो जनु जाइ ॥४॥
गमनो मारग केतिक सोइ।
प्रेरक पोति प्रेरते जोइ४।
इतने महि चलि पौन कुफेरी५।
विज़प्रै गति जहाग़ की प्रेरी ॥५॥
टापू निकटि हुतो बड बारू६।
+भाई गिआन सिंघ जी गिआनी ने आपणी तारीख खालसा विज़च मज़खं शाह बाबत ऐअुण लिखिआ
है:- मज़खं शाह ग़िले जेहलम टांडे पिंड दा वंजारा सिज़ख सी, दस हग़ार बैल ते कई बेड़े अुसदे
वपार विच चलदे से। हुण अुसदी संतान दे चार पिंड कुंदन पुर, राजे वाला आदिक सिआलकोट
दे परगणे वसदे हन, ओह बी मनोण तनोण गुरू के सिदकी सिज़ख हन।
++पा:-बाणिज।
१बड़ीआण अुज़चीआणलहिराण।
२क्रोड़ां जीवाण सहित समुंदर ।वरुंालय = वरुं देवता दा घर भाव समुंदर॥
३हवा।
४मलाह देखके जहाग़ ळ टोरदे हन।
५अुलटी वायू, बादेमुखालिफ।
६रेते दा।