Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २८
३. ।बेड़ी अुते रामराइ नाल मेल॥
२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>४
दोहरा: दिवस जानि करि जानि को१,
कुछक फकीरनि संग।
केतिक सिख जुति तार हुइ,
चढि करि चलो२ तुरंग ॥१॥
चौपई: सतिगुर पूरन श्री हरिराइ।
सुत श्री रामराइ हरखाइ।
मिलबे हित गमनोण ततकाला।
सूरज सुता तीर को चाला ॥२॥
इति श्री कलीधर भे तार।
चपल तुरंगम पर असवार।
दयाराम प्रोहत हुइ नाले।
पंचहु बीर अरूड़्हति चाले ॥३॥
मातुल ले क्रिपाल को साथ।गमन कीन कलीधर नाथ।
अपर सुभट सभि बरजि हटाए।
खरे बिलोकति है समुदाए ॥४॥
जमना तीर तीर गमनते।
रुचिर प्रवाह हेरि हरखंते।
नद चंद सोण बोलति जाते।
सुंदर नदी बिपन बहु भांते ॥५॥
संगोशाहि जीतमल संग।
गंगाराम अनेक प्रसंग।
बहुर माहरीचंद प्रबीन।
संग गुलाब चंद बल पीन३ ॥६॥
पंचहु बीरनि को गुर हेरि।
खरे होइ बोले तिस बेर।
हय धवाइ हज़थार प्रहारनि।
१(गुरू जी ळ मिलन) जाण दा दिन जाणके।
२(राम राइ) चलिआ।
३बड़ा बलवान।