Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) २८

३. ।हिंदू तुरकाण दा संगतां ळ मखौल ते तंग करना॥
२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>४
दोहरा: सतिगुर क्रिपानिधान जी,
करति अनेक बिलास।
चाहति धरम सथापने,
दुशटनि करन बिनाश ॥१॥
चौपई: जबहि बसोए१ को दिन आवै।
चहु दिशि ते संगति अुमडावै।
जिम ग्रीखम बीते जिस काल।
चहुं दिशि अुमडहि घटा बिसाल ॥२॥
प्रेम धरे आनदपुरि आवति।
शबद अखंड कीरतन गावति।
जनु चाखति हैण अंम्रितधारा।
दरशन करहि अनद अुदारा ॥३॥
धंनी घेप सु झंग सिआला।
आवति लमे देश बिसाला।
पुरि मुलतान देश मन केरा२।
नर पशौर के प्रेम घनेरा ॥४॥
काबल, खुरासान, कंधारा।
बलख, बुखारा आइ हग़ारा।
कहि लगि गिनीअहि पशचमबासी।
आइ संगतां होति हुलासी ॥५॥
सफल जनम दरशन करि जानहि।
बहु मोली भेटा गन आनहि।
सुत बनिता को ले करि साथ।
परम पुनीत होइ पिखि नाथ ॥६॥
चली संबूह संगतां आवैण।
हिंदु तुरक अुर किस नहि भावैण।
जो सिर ते गंजा हुइ लाल३।

१वैसाखी।
२ग़िला मीआण वाली विच भज़खर तोण वीह मील पुर मनकेरा इक नगर कोट विच वज़सदा है, इलाके
विच गुरू कीआण संगतां हन। सिज़ख राज समेण इह नगर सिज़ख राज विच सी।
३(टोटं जिस दा) लाल होवे गंज दी बीमारी नाल।

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