Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) १७५
२१. ।हाकम ळ खिझाअुणा। गुलेल अभास॥
२०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>२२
दोहरा: बालक बय महि बर बहुत, दीने गुरू क्रिपाल।
मन बाणछति को लहति हैण१, जो शरधालू बिसालु ॥१॥
सैया: जे शरनागति के प्रतिपालक,
भौजल तारनि को पद पोता२।
बाक बली शिकरे सम जो हुइ३
दोश नसैण समुदाइ कपोता४।
सेवक के प्रिय देवन देव
अभेव सदा गुन गान को पोता५।
सो अबिग़ाहर रूप अनूप
भयो गुर श्री हरि गोविंद पोता६ ॥२॥
कबिज़त: घर के शिखर इत अुत मैण बिहर करि
खेलैण संग बालिकनि गुरू एक काल मैण।
फांधति पलावति छुहावति न गात हाथ७
साथ साथ धावति भ्रमावति सु ढाल मैण८।
अनिक बिलास कौ बिलासति हैण आस पास,
भूखन शबद को अुठावति बिसाल मैण।
राते९ खेल खाल मैण, बिराजैण बाल जाल१० मैण,
प्रकाशै अुडमल मैण जोण चंद चारु चाल मैण११ ॥३॥
सैया: पटंेण पुरि मैण इक आमल१२ थो
तुरकेश, दिलीशुर नै तहि छोरा।
१लैणदे हन।
२चरन जहाज रूप हन।
३बाक जो बाजाण वत बली हन।
४दोशां दे समुदाइ कबूतराण वाणू अुज़ठ नसदे हन।
५खग़ाने।
६पौत्रा।
७सरीर ळ हज़थ नहीण लगण दिंदे हन।
८ढाल दी तर्हां घेरा पा के दौड़दे हन।
(अ) स्रेशट रीती विच फिराणवदे हन।
९लगे होए।
१०बहुते।
११प्रकाशदे हन जिवेण सुहणा चंद चाले पिआ होइआ तारिआण दी पंकती विच (प्रकाशदा है)।
१२हाकम।