Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) १८१

२५. ।जंग-जारी॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>२६
दोहरा: अधिक गई मरि सैन जबि, रही अलप सी आइ।
करिबे हेल सम्रज़थ नहि, भे घाइल समुदाइ ॥१॥
रसावल छंद: रहे दूर ठांढे। महां चिंत बाढे।
नहीण नेर आवैण। खरे धूर थावैण ॥२॥
तबै खान काले। बिचारो बिसाले।
-रही सैन थोरी। थिरी चार ओरी ॥३॥
नहीण जंग ठानैण। रिदै त्रास मानैण।
करै कै न हेला+। भयो जान मेला१ ॥४॥
नहीण ओज धारैण। न आगै पधारैण++।
चमूं लोण बटोरी२। लरेण एक ओरी ॥५॥
करौण जोर सारो। अरै, तांहि मारौण।
चलै शज़त्र सौहैण। रिसे बंद भौहैण ॥६॥
गुरू को पलावैण। अरै ते गहावैण।
बगारैण सु पैणदा३। नहीण त्रास कैणदा ॥७॥बिलोकैण तमाशा। लरैण मोहि पासा-।
रिदै एव धारी। चमूं सो हकारी ॥८॥
कहो जाइ सारे। सभै ही हकारे।
कहे बाक काले। मिलौ आनि जाले४ ॥९॥
दोहरा: सुनि सुनि कै बच श्रौन महि*, सनै सनै समुदाइ।
गमने कालेखां निकटि, हतहि तुपक पिछवाइ ॥१०॥
पाधड़ी छंद: असमान खान पहुचो सु धाइ।
जो बची बाहनी संग लाइ५।
दुंदभि बजंति हारे तुरंग।


+पा:-करे है न हेला।
१मानोण मेला लगा होइआ है। (मेले विच लोकी निर साहस विहले खड़े हुंदे हन किवेण एह खड़े
हन) (अ) भाव (सभ ळ) जिंदां दी पै रही है।
++पा:-मतो यौण बिचारे।
२इकज़ठी कर लवाण।
३पैणदे खां ळ वंगाराण (अ) पैणदा (गुरू जी ळ) वंगारे।
४सारे।
*पा:-सुनि सुनि सुरन श्रोन सभि।
५लै के।

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