Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) १८३२२. ।नौवेण पातशाह जी दा आसाम वलोण मुड़ना॥
२१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>२३
दोहरा: अुत ते साहिब सतिगुरू, तेग बहादर धीर।
करि कारज महिपाल को, हटे संग भट भीर ॥१॥
चौपई: अनिक प्रकार गुरू की सेवा।
करति भयो न्रिप जानति भेवा।
देश कामरू सर करि दीना।
अधिक अनदति लशकरि पीना ॥२॥
संमत केतिक तहां बिताए।
फते लेनि की बंब बजाए।
पटंे दिशि को कूच करायो।
बिशन सिंघ राजा हरखायो ॥३॥
संग गुरू के चहो पयाना।
बाजहि आगै ब्रिंद निशाना१।
सिवका पर श्री तेग बहादर।
न्रिप कहि करि सु चढाए सादर ॥४॥
करति मजल पर मजल सदाई।
चलो आइ लशकर समुदाई।
डेरा परहि आनि करि जहां।
सुधि पसरहि गुर की जहि कहां ॥५॥
संगति मुदत रिदै२ चलि आवै।
अरपि अकोरन दरशन पावै।
दरब आदि गन बसत अजाइब।
हेतु रिझावनि अरपहि साहिब३ ॥६॥
बिनती करहिकामना पै है।
जसु को अुचरति सदन सिधै है।
भए दुपहिरी डेरा घालहि।
भोर होति मारग दल चालहि ॥७॥
पाछल जाम रहे दिन थोरे।


१धौणसे।
२खिड़े रिदे।
३गुरू साहिब जी ळ।

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