Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) १९५२६. ।बुज़धूशाह दे पुज़त्राण दा जंग। इक शहीद होया॥
२५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>२७
दोहरा: इक दुइ हते पठान रन, पुन आयो१ सवधान।
देखि सभै बिसमै रहे, गयो बीच ते जान२ ॥१॥
पाधड़ी छंद: इक दिशा बिखै लै सुभट ब्रिंद।
रुप रहो शाहि बुज़धू बिलद।
जो हुती छेर३ गिरपतिनि केर।
छोरति तुफंग तिन रखी घेर ॥२॥
नहि आन थान दीने सु जानि४।
छोरंति बान धनु तान तान।
बहु मचो रौर बक५ मार मार।
हज़थार समूह प्रहार डारि ॥३॥
बहु बजति दुंदभी दिशनि दोइ।
गन भेरि भुकारन शबद६ होइ।
भट छेरन अज़ग्र७ बजंति ढोल।
भट परे दाइ बड बोलि बोलि ॥४॥
इक बारि परे गन गिरन लोक८।
गन गिरन लगे करि ढूव ढोक९।
गुलकान केरि बरखा हुवंति।
घन दोइ मनो करका परंति१० ॥५॥
छित श्रोनत बिथरो रंग लाल।
बहु मरे हेरि ग्रिज़झैण बिसाल।
भरमी अनेक नभ आइ आइ।१माहरी चंद आया।
२इह जाणके कि माहरी चंद विचोण निकल गिआ है। (अ) सुध पाठ जान जापदा है।
३इह बाकाइदा फौज नहीण हुंदी गिरावाण दे शसत्र वाह सकं वाले लड़ाके जुज़ध वेले इकज़ठे कर
लैणदे हुंदे सन जिवेण अज कल रीग़रव सैना हुंदी है।
४होर थां जाण नहीण दिज़ते।
५कहिदे हन।
६भेरीआण दे वज़जं दा शबद।
७वहीराण दे अज़गे।
८बहुते पहाड़ीए लोकीण।
९ढुक के मेल कीता।
१०दो बदलां तोण मानो ओले (गड़े) पैणदे हन।