Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २०९
१९. ।गोइंदवाल वसावंा॥
१८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>२०
दोहरा: पिछलि पाइ१ श्री अमर जी, गोणदे के संग जाइण।
सने सने मग चलति हैण,जपुजी पाठ कराइण ॥१॥
चौपई: ब्रिज़ध सरीर निबल, कद छोटा२।
परम बिसाल सभिनि के ओटा३।
तीन कोस पर जबि ही गए।
हाथ जोरि तहिण ठांढे भए ॥२॥
जपुजी पाठ भोग को पायो।
अुर श्री अंगद रूप बसायो।
परे४ करी अशटांग प्रणामु।
श्री गुरदेव क्रिपा गुन धामु ॥३॥
पुन करि मुख दिश गोइंदवाल।
गमने पणथ निरभै* तिस काल।
छरी गुरू कर की५ कर धारी+।
सादर अूचे करी अुठारी६ ॥४॥
करि कै अपनो हाथ अगारी।
भूत प्रेत को जाइ दिखारी।
पर तपत दीरघ तिन मांही।
छिन भर थिरो जाइ तहिण नांही ॥५॥
जरे जात७ तिन केर सरीरा।
भए अधीर संभारि न चीरा८।
पिता पुज़त्र को नहिन सणभारै।
भ्रात भ्रात को छोरि पधारै ॥६॥
१पिछले पैरीण।
२मधरा।
३पर सभनां दे बड़े वडे आसरा हन। (अ) बड़े वज़डे हन ते सभ दे ओह आसरा हन।
४(लमे) पैके।
*पा:-पंथ न्रिभै।
५गुराण दे हज़थ दी।
+पा:-छरी गुरू की कर मैण धारी।
६अुठाई होई।
७सड़दे जाणदे हन।८बसतराण दी संभाल नहीण।