Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) २०७२७. ।बरात॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>२८
दोहरा: सुनि सुनि गुर अुतसाहु को, मेल भयो आमोद१।
आवन को तारी करी, ठानति हास बिनोद ॥१॥
चौपई: इक तौ करनि सुधासर मज़जन।
दिवस विसाखी मेला सज़जन२।
दुतीए सनबंधी जे आवैण।
सभि सोण मिलैण अनद अुपजावैण ॥२॥
त्रितीए श्री गुरु हरि गोबिंद।
मिले प्रथम भा काल बिलद।
जहांगीर ने राखे तीर।
रहे निकेत नहीण बर बीर ॥३॥
चंदू आदिक मारनि करे।
मानहि शाहु अदब कौ धरे।
आयुध बिज़दा महि अज़भासू।
इज़तादिक भा सुजसु प्रकाशू ॥४॥
सुनि सुनि पिखनि होति चित चाअू।
बहुर बाहु को सबब बनाअू।
यां ते बहु अनद जुति सबै।
मिलो मेल मिलि मोदति तबै ॥५॥
कुल भज़लन की गोइंदवाल।
पहुचे आनि त्रिया नर जाल।
त्रेहण कुल खडूर ते आए।
गंग मात पित३ मअु ते धाए ॥६॥
अपर मेल लवपुरिते आदी।
आनि पिखी सुंदर गुरु शादी।
जथा जोग मिलि सभि हरखाए।
इसत्री पुरख मेल समुदाए ॥७॥
करि करि सगुन गीत गुन गावैण।
१बहुत खुशी, प्रसंन।
२मिज़त्राण दा मेल।
३श्री गंगा जी दे माता पिता।