Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) २३१

२६. ।जहांगीर ळ प्रिथीआ मिलिआ॥
२५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>२७
दोहरा: प्रिथीआ पाछे दुखी हुई, चितवित चित अति चिंत।
नहीण सुहावति अपर कुछ, गिनती गिनति अनत ॥१॥
चौपई: नीणद न आवति सोचति सोचनि।
निस महि मिलति न पलक बिलोचन१।
महद कशट अपनो महि कलपत२।
बिनां अरथ मति मूरख जलपति३ ॥२॥
दिवस बिखै नहि भोजन भावति।
गटी अुतारति एक चढावति।
दुरबल भयो क्राणति ते खाली।
अुर सुलगति लकरी जिम आली४ ॥३॥
श्री अरजन प्रभुता बहु भांती।
चुभति सेल सम रड़कति छाती।
श्री हरि गोबिंद की सुंदरताई।
नित चितवति फिरगी ग़रदाई ॥४॥
मतसर पावक पुंज प्रजुलती।पूजा५ अधिक होति नहि भुलती।
बधो गुरू कहि अधिक प्रतापू।
नित जिम तेईआ ताप संतापू६ ॥५॥
पुन पाछे भाई गुरदासू।
करि के७ वाक पठी ढिग तासू।
घाइ लगे८ अंग अंग बिसाला।
तिन पर मनहु लवन घसि डाला ॥६॥
जनु पाके ब्रिं९ गाढी पीरा।


१नेत्राण दीआण पलकाण। (अ) पल भर लई अज़खां नहीण मिटीणदीआण।
२बहुते दुज़ख करके आपणे आप विच पिआ कलपदा है।
३बिनां मतलब मूरख सड़दा है।
४गिज़ली ।पंजा: अज़ला = कज़चा॥
५(भाव गुरू अरजन जी दी) पूजा।
६दुज़ख देणदा है (प्रिथीए ळ)।
७बणा के।
८ग़खम लगे होए सन।
९फोड़ा।

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