Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) २३१

३२. ।विजै। कीरत पुर वज़ल तिआरी॥
३१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>३३
दोहरा: चहुदिशि पुरि करतार के, जोधा ब्रिंद तुरंग।
परे हग़ारहु म्रितक भे, भीम थान तिन संग ॥१॥
चौपई: बिधी चंद सोण श्री मुख कहो।
लखू आदि प्रलोक जि लहो।
पठहु दास तिन लोथनि लेय।
रचहि चिता सभि दाह करेय ॥२॥
सुनि आगा बहु दास पठाए।
अमीचंद मिहरादिक लाए।
काशट संचि दाहि सभि करे।
लाइ अुठाइ जि घाइल परे ॥३॥
इतने बिखै निसा हुइ आई।
साल१पुकार कीनि चहु घाई।
कूकर बोलति भज़खति मास।
घाइल तुरक कराहति रास२ ॥४॥
पुरि महि जहि कहि नर मिलि बैसे।
बिती जथा बातन करि तैसे।
अस संघर नहि भयो कदाई।
पंच पहिर महि दल समुदाई ॥५॥
दोनहु दिशि ते लरि लरि मरे।
सतिगुर बिनां कौन अस करे।
कई मास लौ मास रहे है३।
असथी ब्रिंद परे द्रिशटै हैण ॥६॥
मन सतिगुर कै भई गिलान।
-बहु बदबोइ प्राति लौ ठानि४।
रहो न जाइ नगर के मांही।
कुछ अुपाइ इस को हुइ नाही- ॥७॥
इक तौ इहु कारन मन जाना।

१गिज़दड़ां ने।
२कुरलांवदे हन बहुते।
३रहेगा।
४सवेर तज़क हो जाएगी।

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