Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ३६
४. ।रमग़ान मारिआ। औरंगग़ेब ळ खबर॥
३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>५
दोहरा: सैदखान लहि गान को
जब गमनोण रण थान१।
सनमुख श्री सतिगुरू के
भयो खान रमग़ान ॥१॥
चौपई: फेरि तुरंगम तीर चलावहि।
करति शीघ्रता आप बचावहि।
इत अुत गुर के शूकति जाते।
निफल भयो को लगो न गाते ॥२॥
श्री कलगीधर पिखि चतुराई।
इत अुत बिचरति हय चपलाई।
इक निखंग ते तीर निकारो।
जेह बिखै२ धरि खर संचारो ॥३॥
तान कान लौ बान प्रहारा।
ततछिन तरै तुरंग ते डारा।
तिस को देखति तुरक तरासे३।
इक सर ते रमग़ान बिनाशे ॥४॥
सिंघनि की दिशि हेला डारो।
भजो खालसा धीरज हारयो।
लाखहु तुरक कहां लगलरैण।
गुरू आसरे बिन कोण थिरैण ॥५॥
भाजत आनद पुरि लग आए।
लूटनि लगो वसतु समुदाए।
श्री गुजरी माता धन जहां।
लूट लीन कुछ पहुचे तहां ॥६॥
मुल पठान लूट तौ करैण।
तअू गुरू ते अुर बहु डरैण।
ले ले वसतु खुशी हुइ ग़ाहर।
१रण थान। (विचोण) चला गिआ।
२चिज़ले विचोण।
३डर गए।