Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) ३७
३. ।सीस ससकार अनद पुर॥
२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>४
दोहरा: गुजरी जुति श्री नानकी, तिन ढिग सतिगुर जाइ।
कित ससकारहि गुरू सिर? बूझो जिम बनि आइ ॥१॥
सैया: ब्रिंद मसंद कहो कर बंदि
गुरू हरिगोबिंद जी ससकारे।
तां दिन ते गन सोढिनि बंस
सभै पुरि कीरति केर मझारे१।
जोण मरग़ी अबि रावर की
करिये तिम आछिय बुज़धि बिचारे।स्री गुजरी सुनि कै तिन ते
नहि मानति भी मुख बाक अुचारे ॥३॥
औरनि को न रचो पुरि को२
इस कारन ते तहि ले ससकारे।
ए३ जिस काल लई गुरता
तजि पूरब बास४ अुठे अुर धारे।
-ईरखा धारि शरीक रहैण
इह नीक नहीण परि है बिच रारे५-।
शाति सरूप अनूप सदा
इत आवति भे शुभ थान निहारे ॥३॥
बिं्रद दयो धन, मोल लई धर६
और अुपाइ करे सभि भांती।
आनद दा पिखि थान महांन
धरो तबि नाम भयो बज़खाती७।
आनि करो ससकार इहां,
बिरधा तिन मात बडी बिललाती८।
१कीरतपुर दे विच (ससकारे हन)।
२होरनां सोढीआण ने आपणा नगर तां कोई नहीण रचिआ होइआ सी।
३भाव गुरू तेग बहादर जी ने।
४छज़ड के पहिले घर बार।
५चंगा नहीण कि झगड़िआण विच पवीए।
६ग़मीन मुज़ल लीती।
७भाव आनद पुर प्रसिज़ध हो गिआ।
८रोणदी है।