Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) २६३

२८. ।जपुजी महातम॥
२७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>२९
दोहरा: श्री जपुजी पौड़ी प्रथम,
करहि कामना पूर।
पाठक सभि सुख पाइ कै,
बिघन बिनासै कूर१ ॥१॥
आशा पर दूजी पड़ै२,
आदि सज़चु जिह नाम।
देव मंत्र३, अर चलन मैण,
औशधि४, रसान५, शाम६* ॥२॥
बिपदा कारज हान महि,
गावहि को७ रहि लागु।
कारज काहूं अटक महि,
देय भेट गुर भाग८ ॥३॥


१भानक, करड़े।
२आशा पूरण हित दूजी (पौड़ी) पड़्हे।
३देव मंत्र=इशट देव निमंत्रन=आपणे इशट देव ळ आवाहन लई। (अ) देवता दा मंत्र
आराधन लई वी अरथ लगदा है पर देव मंत्र वीहै ते इक शलोक महां मंत्र है इस लई अुह
अरथ फबदा नहीण।
४दवा वरतन वेले।
५रसायन बनाअुण लई।
६शरन लैं लई।
*सौ सा: दे करता ने एथे टपला खाधा है। जपुजी विच पहिलां मूल मंत्र आअुणदा है, ते होसी बी
सच पर अंक १ आअुणदा है। सौ सा: वाले ने इस ळ दूजी पौड़ी किहा है गोया अुसने गुर
प्रसादि तक १ ते होसी बी सच तक २ पौड़ीआण कलप लईआण हन पर अज़गे चलके इस ने
गावै को ळ चौथी पौड़ी जंाइआ है। इस दे आपणे इस लेखे गावै को दी पौड़ी पंजीवीण होणी
चाहीदी सी। जपुजी विच गावै को दी पौड़ी पर अंक ३ है, सौ साखी दे करता ने पहिलोण दो दा
वाधा करके गावै को ते जाके १ दा वाधा रहिं दिज़ता है। सारीआण पौड़ीआण इस ने ४० गिंीआण
हन, इस तर्हां इस ने आपणे हिसाब अखीरला शलोक पौड़ीआण दी गेंती विच शामल कीता है। सो
इस दी गिंती समझं लई इस दी पंजवीण पौड़ी ळ साचा साहिब वाली समझ लईए तां अगोण
पौड़ीआण दी समझ पैणदी जाअू, इस हिसाब हुण गावै को तोण पहिलीआण ते होसी भी सच तोण
मगरलीआण दा वेरवा इह बणू:-देव मंत्र अर चलन मैण सोचै सोच दी ते औशधि रसायन शाम
मैण हुकमी होवन आकार दी पौड़ी ते फिर गावै को दी पौड़ी विच आ जाणगे विपदा कारज,
हान महि, कारज अटक, नव घर ते नवगुण।
७गावे को वाली पौड़ी।
८गुरू भाग भाव दसवंध देवे भेटा।
(अ) (धन) भेटा देवे तां (अटक) भज़ज जावेगी।

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