Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) २७४३५. ।चमकौर विज़च सावधानी॥
३४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>३६
दोहरा: श्री सतिगुर करि काइमी, थिरे दुरग के मांहि।
पीछे लशकर शज़त्र को, खोजति प्रापत नांहि१ ॥१॥
ललितपद छंद: केचित कहैण गुरू रण जूझो
बहुते बान प्रहारे।
अरो रहो करि जुज़ध बडेरा
ब्रिंदहि बीर बिदारे ॥२॥
केचित कहैण अज़ग्र ही गमनोण
खोज तुरंग निहारो।
नहि मरिबे महि रण ते आवति
करामाति अति भारो ॥३॥
तम महि लरते कछू न सूझो
को बच को लरि मारा२।
मरे हग़ारहु बीर तुरंगम
परो खेत रण भारा ॥४॥
इज़तादिक मिलि निरणै करि करि
-कित गमने? -नहि सूझै।
आगे ते पाछे ते आवति
सतिगुर की सुधि बूझैण३ ॥५॥
निस महि तिमर परसपर लरि मरि
घाइल तुरक पहारी।
सुरत संभारि संभारि परे मग
त्रास करैण अुर भारी ॥६॥
जे अनदपुरि की बड सैनारोपर लरि लरि हारे।
तिन ते छूटो संग गुर केरा
पचि पचि झखे गवारे ॥७॥
दिज़ली ते जो दस लख पहुची
१(गुरू जी) लभदे नहीण।
२कौं बचिआ ते कौं लड़ के मारिआ गिआ है।
३अज़गोण पिछोण आअुणदिआण तोण सतिगुराण दा पता पुज़छदे हन।